लोगों पर किसी चीज़ की धुन सवार हो जाना एक आम बात होती है। हालांकि, न चाहते हुए भी अगर इस धुन में व्यक्ति के मन में लगातार अनचाहे विचार आते रहें, चाहे वह उन्हें रोकने की कितनी भी कोशिश करे, तो वह व्यक्ति ओसीडी या ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर से पीड़ित हो सकता है। ऐसा ही उस वक़्त भी होता है जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ को बार-बार छूकर या करके अपने ऑब्सेसिव विचारों पर काबू पाने की कोशिश करता है। यह कुछ निश्चित लक्षण हैं जो बताते हैं कि आप आब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। ओसीडी आपको विभिन्न कार्य करने पर मजबूर कर सकता है जैसे कि कई बार चेक करने के बाद भी दोबारा चेक करने की इच्छा होना कि लाइट बंद है या नहीं। ओसीडी आपको कुछ कार्य बार-बार करने के लिए भी मजबूर करता है, और यह वो कार्य हैं जो दूसरों की नज़र में अनावश्यक होते हैं जैसे कि यह सोचकर बार-बार हाथ धोना कि कहीं उनमें कीटाणु न रह गए हों।
इन अनचाहे व बार-बार उत्पन्न होने वाले विचारों को ऑब्सेसिव विचार कहा जाता है और कुछ गतिविधियों को दोहराने की तीव्र बाध्यकारी इच्छा को कम्पल्शन कहते हैं। कभी-कभार ऐसे विचार सबको आते हैं। लेकिन, अगर यह आपके दैनिक जीवन में दखल देने लगें और हर दिन एक संघर्ष बन जाए तो ये ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर हो सकता है, जिसका उपचार करना ज़रूरी है।
ओसीडी के 3 मुख्य अंश होते हैं:
- जुनूनी विचार जिनसे चिंता या घबराहट पैदा हो सकती है
- वह चिंता जो व्यक्ति महसूस करता है
- चिंता और बाध्यता से छुटकारा पाने के लिए आप जो कार्य बार-बार करते हैं।
- विचार: इनमें शब्द, मुहावरे, कल्पनाएँ और कवितायेँ तक शामिल हैं जो तिरस्कारी, चौंकाने वाले या खौफनाक हो सकते हैं। यह विचार आपके चाहने के वावजूद भी कहीं नहीं जाते।
- अपने दिमाग में दृश्यों की कल्पना करना/देखना: आप अपने दिमाग में अत्यधिक परेशान करने वाली छवियों को देख सकते हैं या खुद को ऐसी आक्रामक या कामुक अवस्था में कल्पना करते हैं, जो आपके अस्तित्व से बिलकुल अलग है।
- संदेह: जो कई घंटों तक बना रहता है और आपको सोचने पर मजबूर कर देता है कि कहीं आपने किसी का कोई बुरा तो नहीं किया या किसी को कष्ट तो नहीं पहुँचाया।
- खुद से बहस: इस बात पर कि किसी विशेष कार्य को करना है या नहीं।
- आदर्शवादी झुकाव: जो आपको यह सुनिश्चित करने पर मजबूर कर देता है कि सब कुछ हर तरह से ठीक है।
- चिंता और भावनाओं का एहसास
- यह एहसास और भावनाएं आपको तनावपूर्ण, चिंतित और साथ ही निरशाजनक व आशाहीन होने का अनुभव कराती हैं।
- कुछ बलपूर्वक करने से आपका मूड तो अच्छा हो जाता है लेकिन जल्दी ही वह पहले जैसी स्थिति में लौट जाता है।
- कम्पल्शन
- आप अपने जुनूनी विचारों को गिनती या किसी शब्द को दोहराते रहने के द्वारा नियंत्रण में करने की कोशिश करते हैं।
- कोई अनुष्ठान जैसे कि बार-बार हाथ धोना।
- चेक करते हैं कि आप साफ़ सुथरे हैं कि नहीं या आपने घर के सारे उपकरण बंद किये हैं या नहीं।
- आप ऐसे किसी भी काम से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं जिसे करने से आपके चिंताजनक विचार वापस आ जाते हैं।
इसके अलावा, व्यक्ति के यह लक्षण भी हो सकते हैं:
- साफ़ सफाई में कुछ ज़्यादा दिलचस्पी लेना
- दिनचर्या को लेकर अधिक चिंतित रहना
- सामाजिक गतिविधियों में कम रूचि रखना
- अपने फैसलों पर खुद संदेह करना
- छोटी-छोटी बातों में बहुत ज़्यादा परेशान या अत्यधिक चिंतित हो जाना
- आसानी से थकान महसूस करना
ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर न होने पर भी, यह लक्षण वाकई किसी में भी हो सकते हैं।
शराब पीना, जुआ खेलना, शौपिंग करना या मनोरंन करने वाले नशीले पदार्थों का सेवन व अत्यधिक व्यायाम कम्पल्सिव या आब्सेसिव व्यवहार का कारण नहीं हैं। यह आपको अच्छा महसूस कराते हैं जबकि ओसीडी में किया जाने वाला व्यवहार व्यक्ति को अत्यधिक तनावग्रस्त बना देता है। यह व्यवहार बहुत ही ख़राब और एक बोझ जैसे लगते हैं।
लगभग 2 प्रतिशत लोग अपने जीवन में किसी समय में ओसीडी से पीड़ित हो जाते हैं। आमतौर पर यह समस्या तब विकसित होती है जब कोई व्यक्ति अपनी किशोरावस्था या वयस्कता/जवानी में हो, और समय के चलते या तो इसमें सुधार आता है या फिर स्थिति और ज़्यादा ख़राब होने लगती है। बदनामी या शर्मिंदगी के कारण ओसीडी से पीड़ित लोग आमतौर पर सालों साल किसी से मदद मांगने में कतराते रहते हैं।
ओसीडी से पीड़ित लोगों की कल्पनाएँ और क्रियाएं दूसरों को भले ही अजीब या असाधारण क्यों न लगें, पर इसका यह मतलब नहीं कि वह सनकी या सनकी हैं। इसपर वह इसलिए काबू नहीं पा सकते क्योंकि यह सब उनकी मर्ज़ी के खिलाफ होता है, और बाकी लोगों को ये लगने लगता है कि वह पागल हैं। ओसीडी के कारण कोई व्यक्ति कभी भी पूर्णतया अपना आपा नहीं खोता है।
ओसीडी के कई कारक होते हैं:
- अनुवांशिक कारण: उन्हें यह समस्या अपने माता-पिता से परंपरा में मिली हो या परिवार में यह स्थिति चल रही हो।
- तनावपूर्ण घटनाएँ: 33% मामलों में, यह समस्या किसी के जीवन में घटी तनावपूर्ण घटना के अनुभव द्वारा विकसित होती है।
- व्यक्ति के जीवन में बदलाव: किसी व्यक्ति के जीवन में हुए कुछ विशेष बदलाव भी इन लक्षणों को जन्म दे सकते हैं, जैसे कि जब कोई जवानी में कदम रखता है या माता-पिता बनता है या फिर कोई अतिरिक्त ज़िम्मेदारी लेता है।
- दिमाग में बदलाव: दिमाग के हिस्सों में कुछ कैमिकल्स का असंतुलन व दुष्क्रिया और न्यूरो-सर्किट्स भी ओसीडी का कारण हो सकते हैं।
- दिमागी घाव: ओसीडी दिमागी हानि या आक्रमण के कारण भी हो सकता है।
अगर आपको निम्नलिखित लक्षणों में से किसी का भी अनुभव होता है तो एक मनोवैज्ञानिक से मिलना बेहतर होगा:
- दैनिक जीवन में बार-बार बाधा डालने वाले अनचाहे विचारों के लक्षण दिखाई देना।
- सबको अनावश्यक लगने वाली क्रियाओं को दोहराना और किसी के उनपर रोक लगाने पर चिंता में घिर जाना।
- प्रतिदिन की गतिविधियों में अधिक समय लेना, क्योंकि वह व्यवहार के तरीकों और धारणाओं के साथ बदल चुकी हैं।
- साधारण सी घटनाओं के विषय में भी निरंतर संदेह करना।
ओसीडी के उपचार में आपकी मदद पेशेवर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक कर सकते हैं।
वह उपचार के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे कि:
- साइकोथेरेपी
- एक्सपोजर एवं रिस्पांस प्रिवेंशन या ईआरपी
- संज्ञात्मक व्यवहार उपचार/थेरेपी या सीबीटी
- एंटी-डिप्रेसेंट्स दवाइयां
एक्सपोजर एवं रिस्पांस प्रिवेंशन या ईआरपी
जब कोई व्यक्ति कुछ समय से तनाव द्वारा पीड़ित होने लगता है, तो उसे जल्दी ही इस अवस्था में रहने का आदी हो जाता है। जब आपको वाकई किसी अवस्था में रहने की आदत पड़ जाती है तो चिंता भी थोड़ी कम होने लगती है। ईआरपी थेरेपी भी इसी सिद्धांत पर आधारित है जिसमें ओसीडी के रोगियों को धीरे-धीरे उनकी परिस्थिति का सामना करना सिखाया जाता है और साथ ही यह भी समझाया जाता है कि वह बाध्यकारी तरीके से कोई भी प्रतिक्रिया न दें। ईआरपी थेरेपी में सबसे पहले रोगी को अपनी उस परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे उन्हें डर लगता है और फिर यह सिखाया जाता है कि वह बाध्यकारी तरीके से प्रतिक्रिया न दें। कम ओसीडी की अवस्था से पीड़ित लोगों के लिए विश्राम तकनीकें मददगार साबित होती हैं।
संज्ञात्मक व्यवहार उपचार या सीबीटी
इस थेरेपी का उद्देश्य ओसीडी के रोगियों को यह समझाना नहीं होता कि कैसे वह अपने तनावपूर्ण और तर्कहीन विचारों को खुद से दूर करें। बल्कि इसका उद्देश्य इन विचारों और छवियों द्वारा उत्पन्न होने वाली रोगी की प्रतिक्रिया को बदलना होता है। ये उन रोगियों के लिए बेहतर है जो अपनी धुन में रहते हैं लेकिन उनका जूनून उन्हें विधि-विधान को मानने से रोकता है। CBT को ERP के साथ मिलकर उपचार में लाया जा सकता है।
एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां
ओसीडी के रोगी यदि डिप्रेशन से परेशान न भी हों, तब भी एसएसआरआई एंटी-डिप्रेसेंट्स उनके उपचार के लिए मशहूर हैं। दवाइयों और सीबीटी से आप काफी बेहतर महसूस कर सकते हैं। हालांकि, अगर 3 महीनों बाद भी दवाई से कुछ लाभ नहीं होता, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि आप अपनी दवा बदलें।
इन उपचारों से कुछ फायदा है?
साइकोथेरेपी हर 4 व्यक्तियों में से 3 पर कारगर सिद्ध साबित होने के लिए मशहूर है। इस उपचार को अपनाने वाले बाकि बचे एक व्यक्ति ने यह बताया कि उन्हें किसी अतिरिक्त उपचार की ज़रूरत है। इतना ही नहीं, साइकोथेरेपी अपनाने वाले 25% रोगियों ने यह बताया है कि सीबीटी के द्वारा वह अपनी इस परिस्थिति का सामना करने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि उन्हें ये लगता है कि सीबीटी के नियमों का पालन कर पाना बहुत कठिन है। ओसीडी के रोगी को समय समय पर “बूस्टर” सेशन से भी गुज़रना पड़ता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पहले वाले लक्षण उनमें दोबारा वापस न आयें।
दवाइयों के मामले में, ओसीडी के उपचार के लिए दवाइयों का इस्तेमाल करने वाले 60% रोगियों ने यह बताया है कि दवाई से उनके लक्षणों को लगभग 50% घटाने में सहायता मिली है। ओसीडी के उपचार में मेडिकेशन भले ही सहायक रही हो लेकिन उसके बावजूद भी उपचार से हुए फायदे को बरक़रार रखने के लिए नियमित रूप से अपने मनोरोग चिकित्सक से मिलना बहुत ज़रूरी है।
इसके बाद परिवारजन, मनोरोग चिकित्सक, सीबीटी थेरेपिस्ट और खुद वह व्यक्ति जो आब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर से पीड़ित है, एक टीम की तरह काम कर सकते हैं। साथ ही, मनोरोग चिकित्सक परिवार वालों को इस समस्या का सामना करने के लिए कुछ निर्देश भी दे सकते हैं।
एक छोटी सी सलाह
ओसीडी से प्रभावित व्यक्ति के परिवार वाले घर में शांति बनाए रखने के लिए उसकी इच्छाओं में सहयोग देने लगते हैं। जब यह धारणाएं और तरीके कई दिनों तक लगातार चलते रहते हैं, तो निवारण करने के लिए व्यक्ति से बात करने की बजाय पीछे हटना आसान हो जाता है, जिसके कारण लक्षण और भी खराब हो जाते हैं। वहीँ दूसरी ओर, जब आप समस्या को अनदेखा करने लगते हैं या ऐसा मान लेते हैं कि समस्या है ही नहीं, तब आपको कोई फायदा नहीं होने वाला है। परिवार वालों को पेशेवर की मदद लेनी चाहिए और परिवार के पीड़ित सदस्य के व्यवहार को बदलने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। घर का वातावरण समर्थक और आश्वस्त करने वाला होना चाहिए। जितनी जल्दी इस विकार का उपचार होगा, उतनी ही जल्दी कामयाबी की उम्मीद होगी।